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Khutulun: The princess that no man could beat in wrestling kushti :- खुतुलुन: वो राजकुमारी, जिसे कोई मर्द कुश्ती में हरा नहीं पाया!

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  शादी के लिए किसी की क्या शर्त हो सकती है? रंग गोरा.., अच्छी नौकरी, अपना घर, बस और क्या चाहिए? लड़कियों के मामले में एक दो डिमांड और बढ़ जाती हैं...जैसे कि 'गृह कार्य में दक्ष कन्या की तलाश है'.. वगैरह-वगैरह! पर क्या कभी कोई ये डिमांड करता है कि लड़की कुश्ती में दक्ष होनी चाहिए? ऐसी भयानक ​डिमांड हमारे समाज में तो क्या प​श्चिमी देशों में तक नहीं होगी. भला कौन चाहेगा कि उसके घर में एक ऐसी औरत हो जो मर्दों को कुश्ती में पटकनी देती ​रहे. पर ऐसा हुआ है...वो भी सदियों पहले!  जी हां! उस जमाने में जब औरतें या तो पर्दें में होती थीं या फिर नुमाइश की चीज समझी जाती थीं. हम बात कर रहे हैं 1260 ईस्वी की और किस्सा बता रहे हैं मंगोल की राजकुमारी खुतुलुन का. जिसके नाम पर आज भी मंगोलियन कुश्ती की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. याद रखिए, मंगोल वही राज्य था जहां से निकलकर चंगेज खान भारत पहुंचा था. खुतुलुन उसी की पोती थी! आम औरतों से अलग थी खुतुलुन मंगोलिया की खुतुलुन ( 1260–1306 ) पुरुषों को चुनौती देने वाली महिलाओं के गौरवशाली इतिहास का वो जरूरी हिस्सा है, जिसे हर किसी को जानना चाहिए. खुतुलुन

Hawa Mahal Fort

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इसे बनाया गया था: 17 99 यह किसने बनाया: महाराजा सवाई प्रताप सिंह यह कहां स्थित है : जयपुर, राजस्थान, भारत यह क्यों बनाया गया था: शाही महिलाओं के लिए सड़क में घटनाओं और त्योहारों का आनंद लेना इतिहास और बाद के विकास महाराजा सवाई जय सिंह, जो महान महाराज सवाई जय सिंह के पोते थे, ने 1799 में जयपुर का निर्माण किया था। वे महाराज भोपाल सिंह द्वारा राजस्थान के झुनजुनू शहर में निर्मित खेतड़ी महल से बहुत प्रभावित हुए थे। हवा महल आज वास्तुकला की राजपूत शैली के एक उल्लेखनीय मणि के रूप में खड़ा है। यह रॉयल सिटी पैलेस के विस्तार के रूप में बनाया गया था और ज़ेनाना या महिला कक्षों की ओर जाता है इस खूबसूरत महल के निर्माण के मुख्य कारणों में से एक में ठीक लैटीस खिड़कियों के साथ सजाया गया और बालकनियों की जांच की गई, शाही राजपूत महिलाओं की सुविधा थी, जो कि सख्ती से पर्दा व्यवस्था का पालन करती थीं और सार्वजनिक कार्यक्रमों की एक झलक पाने में सार्वजनिक रूप से दिखाई देने से बचाती थी जुलूस और त्योहार सड़कों पर हो रहे हैं। हाव महल की वास्तुकला और डिजाइन इस अनूठे पांच मंजिला पिरामिड प

Kumbhalgarh Fort History

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कुम्भलगढ़ फोर्ट : वर्ल्ड कि दूसरी सबसे लम्बी दीवार राजा राणा कुंभा के शासन के तहत, मेवाड़ का राज्य रांतांभौर से ग्वालियर तक फैला था राज्य में मध्य प्रदेश और राजस्थान के विशाल इलाकों भी शामिल थे। लगभग 84 किले अपने दुश्मनों से मेवार की रक्षा कर रहे हैं। 84 में से, राणा कुम्भा ने खुद को 32 लोगों के बारे में डिजाइन किया है। किला उदयपुर से लगभग 9 0 किमी दूर उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित है।और यह चित्तौड़गढ़ के बाद सबसे महत्वपूर्ण किला है। जिस साइट पर कुंभलगढ़ एक बार एक गढ़ था, जो दूसरी शताब्दी ईस्वी के दौरान भारत के मौर्य सम्राटों के जैन वंश के थे। यह भी एक दूसरे से मेवाड़ और मारवाड़ को अलग कर दिया था और मेवाड़ के शासकों के लिए खतरे के समय के लिए भी शरण स्थल के रूप में इस्तेमाल किया गया था, खासकर प्रिवर उदय, मेवाड़ के बच्चे के राजा। यह केवल एक बार पूरे इतिहास में था कि कुंभलगढ़ लिया गया था या जब सम्राट अकबर, अंबा के राजा उदय सिंह और अम्बर के राजा मान सिंह और मारवाड़ के राजा उदय सिंह की सेनाओं के साथ-साथ रक्षा की रक्षा नहीं की जा सकती थी। कुम्भलगढ़ के किले पर हमल

Chanderi Fort Story

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चंदेरी में जाने के लिए अन्य आकर्षण शानदार है चंदेरी किला चंदेरी किला मध्य प्रदेश राज्य में अशोक नगर जिले में स्थित है। चंदेरी शहर में विशाल मुगल किला है जो प्राचीन शहर के आकर्षण को जोड़ता है। किले एक पहाड़ी पर शहर से 71 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह किला 5 किमी. लंबी दीवार से घिरा हुआ है।  चंदेरी के इस महत्वपूर्ण स्मारक का निर्माण राजा कीर्ति पाल ने 11 वीं शताब्दी में करवाया था। इस किले पर कई बार आक्रमण किये गए और अनेक बार इसका पुन: निर्माण किया गया। इस किले में तीन प्रवेश द्वार हैं। सबसे ऊपर के द्वार को हवापुर दरवाज़ा कहा जाता है और सबसे नीचे के द्वार को खूनी दरवाज़ा कहा जाता है । किले के दक्षिण पश्चिम में एक रोचक दरवाज़ा है जिसे कट्टी-घट्टी कहा जाता है। जिसे पहाड़ी की तरफ से बनाया गया है। इस किले से शहर का दृश्य बहुत ही मनोरम है। चंदेरी किले के अंदर पर्यटन के कई आकर्षण हैं जैसे खिलजी मस्जिद, नौखंडा महल, हज़रत अब्दुल रहमान की कब्र आदि। चंदेरी तथा इसके आसपास पर्यटन स्थल चंदेरी में कई ऐतिहासिक स्मारक हैं जैसे चंदेरी किला, राजा महल, सिंहपुर महल, बादलमहल आदि । यहाँ का एक ब

Ginnorgarh Fort Story

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गिन्नौरगढ़ का किला भोपाल से 65 किमी दूरी पर स्थित है ऐतिहासिक गिन्नौरगढ़ का किला। बताया जाता है कि गौंड शाह की सात रानियां थीं और इनमें कमलापति प्रमुख थीं। किले के समीप एक पहाड़ी है, जो अशर्फी पहाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। इतिहासकारों का कहना है कि इस किले को बनाने के लिए अन्य स्थान से मिट्टी मंगाई गई थी। मिट्‌टी की डलिया लाने वाले प्रत्येक मजदूर को एक अशर्फी दी जाती थी। किले का निर्माण विंध्याचल की पहाड़ियों के मध्य समुद्र सतह से 1975 फीट ऊंचाई पर किया गया है। प्रकृति की गोद में बसे और हरियाली से घिरे इस किले की संरचना अद्भुत है। लगभग 3696 फीट लंबे और 874 फीट चौड़े इलाके में फैले इस किले की विशालता देखने योग्य है। एडवेंचर के शौकीनों को यह किला अपनी ओर आकर्षित करता है। इस किले का निर्माण परमार वंश के राजाओं ने किया था। इसके बाद निजाम शाह ने किले को नया रूप प्रदान कर इसे अपनी राजधानी बनाया था। गौंड शासन की स्थापना निजाम शाह ने की थी। यह ऐतिहासिक किला 800 वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। यहां पर परमार और गौंड शासकों के बाद मुगल तथा पठानों ने भी शासन किया है। प्राकृतिक वन-संपदा से पर

Bandhavgarh Fort Story

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एक ऐसा स्थान जो रहस्यों से भरा होने के साथ-साथ दैवीय भी हैं| एक ऐसा प्राचीन स्थल जहाँ भगवान भी कई वर्षों से विश्राम कर रहे हैं| यहाँ पर आपकों भगवान विष्णु के 12 अवतारों के दर्शन एक साथ हो सकते हैं| अगर आपको किसी ऐसे प्राचीन स्थान की तलाश है, जहाँ पर आप प्रकृति के साथ-साथ प्राचीन सभ्यताओं और रहस्यों का भी दीदार करें तो ऐसी ही एक जगह है ‘बांधवगढ़’ का किला| बांधवगढ़ का यह किला अपने अन्दर कई रहस्यों को छिपाए खड़ा है| यहाँ आपको भगवान् विष्णु की पत्थरों से बनी विशाल प्रतिमा के दर्शन साथ ही प्रकृति की अद्भुत सुन्दरता भी नजर आएगी| ‘बांधवगढ़’ का किला मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है| इसे आमतौर पर ‘बांधवगढ़ नेशनल पार्क’ के नाम से भी जाना जाता है| लोग नेशनल पार्क तक तो जाते हैं, लेकिन कई लोगों को जानकारी नहीं होने से वह किले की सुन्दरता से वंचित रह जाते हैं|बताया जा रहा है कि इस किले का निर्माण लगभग 2 हजार साल पहले किया गया था| यहाँ पर एक पहाड़ के नाम पर ही बांधवगढ़ नाम रखा गया है | कहा जाता है कि सिर्फ यह किला ही नहीं बल्कि पूरा पहाड़ भी रहस्यों और अद्भुत इतिहास से भरा हुआ है| ब

Jahangir Mahal Orchha Fort Story

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यूपी के बुंदेलखंड की खूबसूरत और सबसे दिलचस्प जगह है ओरछा। झांसी से करीब 16 किमी दूर स्थित प्राचीन नगर ओरछा, बेतवा नदी के किनारे बने महलों और मंदिरों के लिए मशहूर है। इनमें एक ऐसा महल भी शामिल है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। एक तरफ इस किले के पत्थरों पर बनी नक्काशी शहर की खूबसूरती बढ़ा रही है तो दूसरी तरफ देश की संस्कृति का भी अहसास करती है। 1518 में बनवाया गया था ये महल.  8 नवंबर 1627 को जहांगीर की डेथ होती है। - ओरछा के हिंदू राजा वीर सिंह ने अपने खास मित्र जहांगीर (सलीम) के लिए साल 1518 में एक भव्य महल का निर्माण कराया था। - जो 'जहांगीर' महल के नाम से जाना जाता है। उस समय दोनों की दोस्ती हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक हुआ करती थी। - लोग इनकी दोस्ती की मिसाल दिया करते थे। जब महल बनकर तैयार हुआ, तब उसका प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की तरफ था। - बाद में पश्चिम दिशा की तरफ भी एक द्वार बना दिया गया। अब पर्यटक इसी दरवाजे से किले में आते-जाते हैं। मुगल-बुंदेला की दोस्ती का प्रतीक है महल - ये महल बुंदेला और मुगल शिल्पकला का एक बेजोड़ नमूना है। - ये आयताकार