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Showing posts from January, 2018

Bandhavgarh Fort Story

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एक ऐसा स्थान जो रहस्यों से भरा होने के साथ-साथ दैवीय भी हैं| एक ऐसा प्राचीन स्थल जहाँ भगवान भी कई वर्षों से विश्राम कर रहे हैं| यहाँ पर आपकों भगवान विष्णु के 12 अवतारों के दर्शन एक साथ हो सकते हैं| अगर आपको किसी ऐसे प्राचीन स्थान की तलाश है, जहाँ पर आप प्रकृति के साथ-साथ प्राचीन सभ्यताओं और रहस्यों का भी दीदार करें तो ऐसी ही एक जगह है ‘बांधवगढ़’ का किला| बांधवगढ़ का यह किला अपने अन्दर कई रहस्यों को छिपाए खड़ा है| यहाँ आपको भगवान् विष्णु की पत्थरों से बनी विशाल प्रतिमा के दर्शन साथ ही प्रकृति की अद्भुत सुन्दरता भी नजर आएगी| ‘बांधवगढ़’ का किला मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है| इसे आमतौर पर ‘बांधवगढ़ नेशनल पार्क’ के नाम से भी जाना जाता है| लोग नेशनल पार्क तक तो जाते हैं, लेकिन कई लोगों को जानकारी नहीं होने से वह किले की सुन्दरता से वंचित रह जाते हैं|बताया जा रहा है कि इस किले का निर्माण लगभग 2 हजार साल पहले किया गया था| यहाँ पर एक पहाड़ के नाम पर ही बांधवगढ़ नाम रखा गया है | कहा जाता है कि सिर्फ यह किला ही नहीं बल्कि पूरा पहाड़ भी रहस्यों और अद्भुत इतिहास से भरा हुआ है| ब

Jahangir Mahal Orchha Fort Story

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यूपी के बुंदेलखंड की खूबसूरत और सबसे दिलचस्प जगह है ओरछा। झांसी से करीब 16 किमी दूर स्थित प्राचीन नगर ओरछा, बेतवा नदी के किनारे बने महलों और मंदिरों के लिए मशहूर है। इनमें एक ऐसा महल भी शामिल है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। एक तरफ इस किले के पत्थरों पर बनी नक्काशी शहर की खूबसूरती बढ़ा रही है तो दूसरी तरफ देश की संस्कृति का भी अहसास करती है। 1518 में बनवाया गया था ये महल.  8 नवंबर 1627 को जहांगीर की डेथ होती है। - ओरछा के हिंदू राजा वीर सिंह ने अपने खास मित्र जहांगीर (सलीम) के लिए साल 1518 में एक भव्य महल का निर्माण कराया था। - जो 'जहांगीर' महल के नाम से जाना जाता है। उस समय दोनों की दोस्ती हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक हुआ करती थी। - लोग इनकी दोस्ती की मिसाल दिया करते थे। जब महल बनकर तैयार हुआ, तब उसका प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की तरफ था। - बाद में पश्चिम दिशा की तरफ भी एक द्वार बना दिया गया। अब पर्यटक इसी दरवाजे से किले में आते-जाते हैं। मुगल-बुंदेला की दोस्ती का प्रतीक है महल - ये महल बुंदेला और मुगल शिल्पकला का एक बेजोड़ नमूना है। - ये आयताकार

Gwalior Fort History

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ग्वालियर किला मध्य भारत के मध्य प्रदेश में ग्वालियर के पास स्तिथ है। किला एक सुरक्षित बनावट के के साथ २ भागों में बंटा हुआ है। एक भाग गुजरी महल और दूसरा मन मंदिर। इसे 8 वी शताब्दी में राजा मान सिंग तोमर ने बनवाया था। ग्वालियर किल्ले का इतिहास   ग्वालियर किले को बनने में कितना वक़्त लगा इसके कोई पुख्ता साक्ष नहीं हैं। पर स्थानीय निवासियों के अनुसार इसे राजा सूरज सेन ने आठंवी शताब्दी में बनवाया था। उन्होंने इसे ग्वालिपा नाम के साधू के नाम पर धन्यवाद् के रूप में बनवाया। कहा जाता है की साधू ने उन्हें एक तालब का पवित्र जल पीला कर कुष्ठ रोग से निजात दिलाई थी। साधू ने उन्हें “पाल” की उपाधि से नवाज़ा था और आशीर्वाद दिया था। जब तक वे इस उपाधि को अपने नाम के साथ लगाएंगे तब तक ये किला उनके परिवार के नियंत्रण में रहेगा। सूरज सेन पाल के 83 उत्तराधिकारियों के पास इस किले का नियंत्रण रहा पर 84 वे वंशज के करण इस किले को हार गए। ऐतेहासिक दस्तावेज और साक्ष्यों के अनुसार ये किला 10 वी शताब्दी में तो ज़रूर था परन्तु उसके पहले इसके अस्तित्व में होने के साक्ष नही हैं। परन्तु किले के पर

Burhanpur Asirgarh Fort Story

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असीरगढ़ का किला – श्रीकृष्ण के श्राप के कारण यहां आज भी भटकते हैं अश्वत्थामा, किले के शिवमंदिर में प्रतिदिन करते है पूजा महाभारत के बारे में जानने वाले लोग अश्वत्थामा के बारे में निश्चित तौर पर जानते होंगे। महाभारत के कई प्रमुख चरित्रों में से एक अश्वत्थामा का वजूद आज भी है। अगर यह पढ़कर आप हैरान हो रहे हैं, तो हम आपको बता दें कि अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने निकले अश्वत्थामा को उनकी एक चूक भारी पड़ी और भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया।पिछले लगभग पांच हजार वर्षों से अश्वत्थामा भटक रहे हैं। ऐसा माना जाता है की बुरहानपुर, मध्य प्रदेश स्तिथ असीरगढ़ किले की शिवमंदिर में प्रतिदिन सबसे पहले पूजा करने आते है। शिवलिंग पर प्रतिदिन सुबह ताजा फूल एवं गुलाल चढ़ा मिलना अपने आप में एक रहस्य है। हम यहां आपको महाभारत काल के अश्वत्थामा से जुड़ी वो खास बातें बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में आपको शायद ही मालूम होगा। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे अश्वत्थामा अश्वत्थामा महाभारतकाल अर्थात द्वापरयुग में जन्मे थे। उनकी गिनती उस युग के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी।