भानगढ़ किला Bhangarh Fort
भानगढ़ किले का निर्माण 17वीं शताब्दी में राजा भगवंत दास ने करवाया था, जो एक राजपूत शासक और मुगल सम्राट अकबर के सेनापति मान सिंह प्रथम के छोटे भाई थे। किले का निर्माण अरावली पर्वतमाला में एक पहाड़ी पर एक रक्षात्मक संरचना के रूप में किया गया था, जिसका उद्देश्य जयपुर और मध्य भारत के बीच व्यापार मार्गों की रक्षा करना था
भानगढ़ के विनाश के और भी कई किस्से प्रचलित हैं, लेकिन सर्वाधिक चर्चित कहानी यह है कि इस राज्य में तांत्रिकों, साधुओं और ज्योतिषियों को बेहद सम्मान हासिल था। महाराजा छतर सिंह की रानी रत्नावती तीतरवाड़ा की बेटी थी, वह बेहद रूपवती तो थी ही, तंत्र-मंत्र की विधाओं में भी पारंगत थी. कहा जाता है कि सिंघा नाम के एक तांत्रिक ने भानगढ़ के बारे में जब यह सुना कि यहां तांत्रिकों का सम्मान किया जाता है तो वह यहां पहुंच गया और महल के सामने स्थित एक पहाड़ी पर अपना स्थान बनाकर साधना करने लगा।
जाने कैसे! कभी उसने पहाड़ी से रानी को देख लिया और उसके सौंन्दर्य पर मोहित हो गया। वह अच्छी तरह जानता था कि बिना तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग किए रानी तक पहुंच पाना भी असंभव है, दूसरे उसे यह भी पता था कि वह जिसे पाना चहता है वह कोई साधारण स्त्री नहीं है, बल्कि उसी राज्य की रानी है, जहां उसे आश्रय मिला हुआ है। राजा को यदि उसके प्रयासों की भनक भी मिल गई तो उसके प्राण बचाने वाला कोई नहीं होगा। इस सबके बाद भी वह रानी को मन से नहीं निकाल पा रहा था। अंततः इस सेवड़ा तांत्रिक ने अपनी तांत्रिक विद्या के द्वारा ही रानी रत्नावती को वश में करने का फैसला कदिया
उसने कई बार छोटे-मोटे प्रयास किए, लेकिन वह सफल न हो सका। अपनी लगातार असफलताओं के कारण रानी को पा लेने की इच्छा उसके मन में बदला लेने की हद तक बढ़ती जा रही थी। दूसरी ओर सिंघा को इस बात का रत्ती भर भी ज्ञान नहीं था कि रानी रत्नावती भी तंत्र विद्या की अच्छी जानकार है। यह बात न मालूम होने के कारण ही तांत्रिक अंत में वह भूल कर बैठा, जिसके कारण न केवल वह अपनी मृत्यु का, बल्कि भानगढ़ के विनाश का भी कारण बना।
हुआ यह कि रानी को हासिल न कर पाने की खीझ और कई विफल प्रयासों के बाद उसने अपना आखिरी दांव खेला।
सिंघा ने रानी की एक दासी को अपनी कुटिल चाल का हिस्सा बनाया। यह दासी जब बाजार से राजमहल जा रही थी तो तांत्रिक ने अपने वशीकरण मंत्र से बंधे तेल का एक कटोरा उस दासी को यह समझाकर दिया कि हम तंत्रसिद्ध बाबा हैं, रानी को यह तेल देना और उन्हें यह समझाना कि इस तेल का उपयोग अपने शरीर पर करें, इससे उनका कल्याण होगा।
राजमहल में पहुंचकर दासी ने तेल का कटोरा रानी के सामने रखा और जो भी घटित हुआ था वह रानी को बताया, साथ ही उस तांत्रिक बाबा का हुलिया भी बयान किया।
रानी ने तेल को परखने के लिए उस पर अपना मंत्र डाला, तेल घूमने लगा, अपनी सिद्धि से रत्नावती ने जान लिया कि तेल में वशीकरण के साथ ही मारक मंत्र व तंत्र का प्रयोग किया गया है। रानी को समझ आ गया कि तांत्रिक ने उसे अपने मोहपाश में बांधने के लिए ही यह तेल दासी के हाथ भिजवाया है।
रानी के क्रोध की सीमा न रही और इसी गुस्से में उसने उसी समय अपने सामने रखी तेल की कटोरी पर सिद्ध मारक मंत्र पढ़कर वहीं से सामने वाली पहाड़ी पर फेंका, जहां बैठा वह तांत्रिक अनुष्ठान कर रहा था। तेल एक भयानक आवाज के साथ शिला के रूप में वहां से उड़ा और कहर बनकर तांत्रिक के ऊपर टूटा और सिंघा वहीं मृत्यु को प्राप्त हुआ।
कहते हैं कि मरने से पहले वह श्राप दे गया कि मंदिरों को छोड़कर सारा भानगढ़ नष्ट हो जाएगा और सभी लोग मारे जाएंगे।
जिस धरती पर भानगढ़ किला खड़ा है, वह गुरू बालूनाथ नामक शक्तिशाली तपस्वी का था। किले का निर्माण शुरू करने से पहले माधो सिंह ने तपस्वी की अनुमति मांगी थी। उन्हें एक शर्त के साथ अनुमति दी गई। शर्त यह थी कि किले की छाया कभी भी तपस्वी के घर पर न पड़े वरना बड़ी दुघर्टना हो सकती है। हालांकि उनके उत्तराधिकारी अजब सिंह ने इस शर्त की अनदेखी की और मजबूत दीवारों के साथ किला बनवाया। इन दीवारों की छाया तपस्वी के घर पर पड़ी, जिसने भानगढ़ क्षेत्र को पूरी तरह से तबाह कर दिया था।
राजकुमारी रत्नावती के हाथ से वह तेल एक चट्टान पर गिरा तो वह चट्टान तांत्रिक सिंधिया की तरफ लुढ़कती हुई आने लगी और उसके ऊपर गिरकर उसे मार दिया। तांत्रिक सिंधिया मरते समय उस नगरी व राजकुमारी को नाश होने का श्राप दे दिया जिससे यह नगर ध्वस्त हो गया।रानी रत्नावती, आमेर के राजा मानसिंह के छोटे भाई राजा माधव सिंह की पत्नी थीं. वे भगवान कृष्ण की भक्त थीं और उनके पति राजा माधव सिंह भी भगवान कृष्ण के भक्त
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